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डॉ विकास असाती की सलाह, महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए, समय पर डायग्नोसिस के लिए साल में एक बार जांच करवाना जरूरी
इंदौर में हर साल बड़ी संख्या में ब्रेस्ट कैंसर के केसेस सामने आ रहे हैं। 2020 में भारत में ब्रेस्ट कैंसर के 1,78,361 नए मरीजों का पता चला।
COVID-19 महामारी के दौरान एडवांस स्टेज में कई लोगों को यह बीमारी पता चली। शहरी और ग्रामीण दोनों जगह की महिलाओं को इस कैंसर से खतरा है।
इंदौर: भारत में ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरुरत को महसूस करते हुए डॉक्टरों ने सलाह दी है कि महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए और बीमारी से मौत के खतरे को कम करने के लिए जांच करवाना चाहिए। GLOBOCAN 2020 के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं में होने वाले सबसे आम कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर है। 2020 में भारत में 1,78,361 नए ब्रेस्ट कैंसर मरीजों का पता चला था। लगभग 4 में से 1 महिला कैंसर पीड़िता को ब्रेस्ट कैंसर था। दिल्ली और बैंगलोर जैसे बड़े शहरों और महानगरों में ब्रेस्ट कैंसर के केसेस ज्यादा होने के कारण इंदौर में भी बड़ी संख्या में केसेस सामने आ रहे हैं।
इंदौर के मेडिकल आंकोलॉजिस्ट डॉ विकास असाती ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान एडवांस स्टेज में कई लोगों को इस बीमारी का पता चला। महामारी के दौरान इलाज बंद करना एक बड़ी समस्या थी, खासकर पहले लॉकडाउन के दौरान लोगों को यह समस्या ज्यादा आई। निर्धारित इलाज के खराब पालन के कारण ज्यादा संख्या में मरीजों में बीमारी गंभीर हुई।
डॉ असाती ने विस्तार से कहा, “भारत में जागरूकता की कमी, अज्ञानता और खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के कारण अधिकांश ब्रेस्ट कैंसर मरीजों का डायग्नोसिस एडवांस स्टेज में किया जाता है। कई बार जब मैं अपने मरीजों से देर से बीमारी पता चलने के बारे में पूछता हूं, तो सबसे ज्यादा जवाब होता है कि उन्हें बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। जानकारी रहने पर उन्हें पता चल सकता है कि एक छोटी सी बिना दर्द वाली ब्रेस्ट में गांठ कैंसर हो सकती है। पश्चिमी देशों में स्क्रीनिंग कोर्स के कारण प्रारंभिक अवस्था में मरीजों का डायग्नोसिस किया जाता है और जीवित रहने की दर बहुत ज्यादा होती है।”
शहरी और ग्रामीण दोनों जगह की महिलाओं को इस कैंसर से खतरा है। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता कम है, इसलिए इस बीमारी का पता आमतौर पर एडवांस स्टेज में चलता है और इसके खराब परिणाम होते हैं। ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क फैक्टर बिना बदलाव के और बदलाव वाले हो सकते हैं। बिना बदलाव वाले रिस्क फैक्टर हैं जिन्हें उम्र, महिला लिंग, श्वेत जाति, पारिवारिक इतिहास और बीआरसीए उत्परिवर्तन जैसे कुछ आनुवंशिक परिवर्तन से बदला नहीं जा सकता है। ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े बदलने वाले रिस्क फैक्टर में मोटापा, 30 साल की उम्र के बाद पहली गर्भावस्था और शराब का सेवन, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी का उपयोग आदि शामिल है।
ब्रेस्ट कैंसर के लक्षणों में ब्रेस्ट या अंडरआर्म (बगल) में गांठ, ब्रेस्ट के आकार में कोई बदलाव, ब्रेस्ट की त्वचा का डिंपल, निप्पल क्षेत्र या ब्रेस्ट में त्वचा पर लाली, निप्पल दब जाना, खून के साथ निप्पल से दूध आना और अन्य निप्पल डिस्चार्ज ब्रेस्ट कैंसर के चेतावनी भरे संकेत होते हैं।
डॉ असाती ने कहा, “अगर 40 वर्ष की उम्र के महिला के स्तन में कोई बिना दर्द के गांठ दिखती है तो उसे नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए। सेल्फ ब्रेस्ट इग्जामिनेशन और मेमोग्राफी से हम शुरूआती स्टेज में ब्रेस्ट कैंसर का पता लगा सकते हैं।”
स्क्रीनिंग कराने का मुख्य उद्देश्य गांठ जैसे लक्षणों के दिखने से पहले बीमारी का पता लगाना है। 40 साल से ऊपर की सभी महिलाओं की स्क्रीनिंग की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि ब्रेस्ट कैंसर का इलाज स्टेज पर निर्भर करता है। अगर प्रारंभिक अवस्था में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलता है यानी, ट्यूमर का आकार 2 सेमी से कम है तो पहले सर्जरी की जाती है। सर्जरी के बाद मरीज में फिर से कैंसर होने के जोखिम को कम करने के लिए कीमोथेरेपी की जाती है। अगर दूसरे स्टेज या तीसरे स्टेज में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलता है तो मरीजों का कीमोथेरेपी (ब्रेस्ट कैंसर के प्रकार के आधार पर टार्गेटेड थेरेपी के साथ) के साथ इलाज किया जाता है, जिसके बाद सर्जरी और रेडियोथेरेपी होती है। अगर चौथे स्टेज में ब्रेस्ट कैंसर का डायग्नोसिस किया जाता है, तो इलाज का उद्देश्य जीवित रहने में सुधार के साथ बीमारी को नियंत्रित करना होता है।
डॉ असाती के मुताबिक अगर पहले और दूसरे स्टेज में कैंसर का पता चल जाए तो जीवित रहने की दर 90% से ज्यादा होती है। जबकि चौथे स्टेज में यह दर पांच साल सर्वाइवल रेट के साथ 20% से भी कम हो जाती है।
डॉ. असाती का कहना है कि सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बीमारी का पता चलने पर भी सकारात्मक बने रहना है। नियमित एक्सरसाइज, योग, मेडिटेशन और स्वस्थ खानपान रोजमर्रा की जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। जिस हिसाब से डॉक्टर सलाह दें उसी हिसाब से इलाज करें। अपने डॉक्टर ऑन्कोलॉजिस्ट के साथ नियमित फालो-अप बहुत जरूरी है। ठीक हो चुके मरीज ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षणों और संकेतों के बारे में जागरूकता फैलाने और ब्रेस्ट कैंसर की जांच कराने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।